'अर्थपूर्ण जीवनाचा समाजात शोध' घेण्यासाठी २००६ साली डॉ. अभय आणि डॉ. राणी बंग यांनी तरुणांसाठी विकसित केलेली शिक्षणप्रक्रिया म्हणजे 'निर्माण'...

समाजात सकारात्मक बदल घडवून आणण्यासाठी विविध समस्यांचे आव्हान स्वीकारणा-या व त्याद्वारे स्वत:च्या आयुष्याचा अर्थ शोधू इच्छिणा-या युवा प्रयोगवीरांचा हा समुदाय...

'मी व माझे' याच्या संकुचित सीमा ओलांडून,त्यापलीकडील वास्तवाला आपल्या कवेत घेण्यासाठी स्वत:च्या बुद्धीच्या,मनाच्या व कर्तृत्वाच्या कक्षा विस्तारणा-या निर्माणींच्या प्रयत्नांचे संकलन म्हणजे "सीमोल्लंघन"!

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Sunday, 11 August 2013

गोताखोर- पं. आनंद शर्मा

मै गोताखोर, मुझे गहरे जाना होगा,
तुम तट पर बैठ भंवर से बातें किया करो.

मै पहला खोजी नहीं अगम भवसागर का,
मुझसे पहले इसको कितनो ने थाहा है,
तल के मोती खोजे परखे बिखराए हैं,
डूबे हैं पर मिट्टी का कौल निबाहा है.
मैं भी खोजी हूं, मुझमे उनमे भेद यही,
मैं सबसे महंगे उस मोती का आशिक हूं,
जो मिला नहीं, वो पा लेने की धुन मेरी,
तुम मिला सहेजो घर की बातें किया करो
मै गोताखोर, मुझे…..

पथ पर तो सब चलते हैं, चलना पड़ता है,
पर मेरे चरण नया पथ चलना सीखे हैं,
तुम हंसो मगर मेरा विश्वास ना हारेगा,
जीने के अपने अपने अलग तरीके हैं.
जिस पथ पर कोई पैर निशानी छोड़ गया,
उस पथ पर चलना मेरे मन को रुचा नहीं,
कांटे रौदूंगा, अपनी राह बनाउंगा,
तुम फ़ूलों भरी डगर की बातें किया करो,
कोई बोझा अपने सिर पर मत लिया करो.
मै गोताखोर, मुझे

नैनो के तीखे तीर, कुन्तलों की छांया,
मन बांध रही जो यह रंगो की डोरी है,
इन गीली गलियों मे भरमाया कौन नहीं,
यह भूख आदमी की सचमुच कमजोरी है.
पर अपने पे विजय नहीं जिसने पायी,
मैं उसको कायर कहता हूं पशु कहता हूं,
बस इसीलिए मैं वीरानो में रहता हूं,
तुम जादू भरे नगर की बातें किया करो,
जब जब हो जरा उतार और पी लिया करो
मै गोताखोर, मुझे

पथ पर चलते उस रोज़ बहार मिली मुझे,
बोली गायक मैं तुमसे ब्याह रचाऊंगी,
ऐसा मनमौजी मिला नहीं दूजा कोई,
जग के सारे फ़ूल तुम्हारे घर ले आऊंगी,
मैं बोला मेरा प्यार, सदा तुम सुखी रहो,
मेरे मन को कोई बंधन स्वीकार नहीं,
तब से बहार से मेरा नाता टूट गया,
तुम फ़ूलों को अपनी झोली में सहेज रख लिया करो,
मुझसे केवल पतझड़ की बातें किया करो.
मै गोताखोर, मुझे

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